{राश की डायरी}
घलुए की चाय, हलुए का पान
ठलुए का अस्सी फिर से जवान
अस्सी उवाच:
आप भी सुनिए!
" काशीनाथ सिंह को भरम हो गया। वे माया महाठगिनी के शिकार हो गए। कलियुग माथे पर सवार होना ही था! इसीलिए तो सुंदर मुहल्ला अस्सी छोड़कर सुंदरपुर चले गए!"
" आजकल ' रेहन पर रग्घू' हैं।"
"कौन चूतिया कहता है कि अस्सी मर गया! अस्सी प्रसव से गुजर रहा है! उसका पुनर्जन्म हो रहा है!
आप पूछेंगे, कैसे!"
"अव्वल तू हौआ के ? पूछै वाला!"
" पूछे तो सुन ही लीजिए!"
"ये हैं बदरी विशाल!"
"बरसना है बदरी का-
" अस्सी पर गालियों का प्रथम रिसर्चर हूँ मैं। सिर्फ मैं बता सकता हूँ कि पृथ्वी की प्रथम गाली और प्रथम पंडिताई का जन्म यहां से हुआ है! मैं चालीस साल कवि सम्मेलन में कविता में गाली बांचता रहा। कवि सम्मेलन में मंदी आ गई तो गंगा आरती पकड़ ली। गंगा आरती में आजकल वेद मंत्र बांचता हूँ। दोनों को ज़माना दिल थाम कर सुनता है!"
" है कोई दूसरा माई का लाल जो एक साथ गाली और मंत्र को साध ले! और जिसे ज़माना स्वीकार ले!"
...
यह तो सिर्फ 14 सेकंड की रील है।
...
यह है ज़िंदा अस्सी! किलकारी मारता हुआ
नव शिशु!
बीकानेर से आए मेरे लेखक साथी नवनीत पांडेय और उनके सहयात्री अवाक!
बीकानेरी कथन का स्वाद फेल हुआ या काशीनाथ का काशी का अस्सी, यह दूरबीन से नहीं खुर्दबीन से खोजना होगा।!
माइक्रोस्कोप से पकड़ने के लिए पहले पान का बीड़ा बनिए या नाली का कीड़ा!
बकैती या फकैती में अस्सी आपका गुरु था, है और रहेगा!
V लॉग से पकड़ में जो नहीं आए वह है काशी और उसका अस्सी!
जारी...
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रामाज्ञा शशिधर