साधोसराय

साधो, देखो जग बौराना /सांच कहूँ तो मारन धाबे/झूठे जग पतियाना .

Tuesday, August 24, 2010

एक साधो का रोजनामचा

              
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एक साधो का रोजनामचा क्या है?

एक साधो का रोजनामचा क्या है? गल्प है . विशुद्ध किस्सा. लेकिन ठहरिये. हवा हवाई या परलोक कथा नहीं. यह इसी लोक में रोज रोज घटित हो रहे यथार्थ का गल्पित कल्प है. एक साधो जो इस ब्रह्माण्ड की प्राचीनतम नगरी के साधोसराय मोहल्ले में रहता है, बड़ा ही गपोड़ी , बातूनी, बकबकिया , बकैत, बरबरिया, बहसबाज है. वह कबीर के समय का साधो नहीं, आज का साधो है. वह किस्सा निगलता है और किस्सा ही उगलता है. इस कथा वाचक के किस्से का न ओर है न छोर. जो भी हो मुझे इसकी बतकही सुनने में मजा आता है. साधो की कथा में आसपास का नंगा सच कभी कम्बल ओढ़कर आता है, कभी लंगोट पहनकर और कभी पूरा कपडा उतारकर. पाठको, मैं ईमानदारी से वचन देता हूँ कि जगत के हजारों साधो के बारे में यह साधो जो शेयर करेगा वह बिना तेल मिर्च लगाये मैं आपके सामने परोस दूंगा. अब यह आपकी साधना कला पर निर्भर करता है कि कथा कमंडल से कैसे सच का मिनरल वाटर पी लेते हैं और झूठ का सिंथेटिक दूध त्याग देते हैं.तथास्तु.

रोजनामचाकार

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रामाज्ञा शशिधर
साहित्य लेखन , अध्यापन, पत्रकारिता और एक्टिविज्म में सक्रिय. शिक्षा-एम्.फिल. जामिया मिल्लिया इस्लामिया तथा पी.एचडी.,जे.एन.यू.से. समयांतर(मासिक दिल्ली) के प्रथम अंक से ७ साल तक संपादन सहयोग.इप्टा के लिए गीत लेखन.बिहार और दिल्ली जलेस में १५ साल सक्रिय .अभी किसी लेखक सगठन में नहीं.किसान आन्दोलन और हिंदी साहित्य पर विशेष अनुसन्धान.पुस्तकालय अभियान, साक्षरता अभियान और कापरेटिव किसान आन्दोलन के मंचों पर सक्रिय. . प्रिंट एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया के लिए कार्य. हिंदी की पत्र-पत्रिकाओं हंस,कथादेश,नया ज्ञानोदय,वागर्थ,समयांतर,साक्षात्कार,आजकल,युद्धरत आम आदमी,हिंदुस्तान,राष्ट्रीय सहारा,हम दलित,प्रस्थान,पक्षधर,अभिनव कदम,बया आदि में रचनाएँ प्रकाशित. किताबें प्रकाशित -1.बुरे समय में नींद 2.किसान आंदोलन की साहित्यिक ज़मीन 3.विशाल ब्लेड पर सोयी हुई लड़की 4.आंसू के अंगारे 5. संस्कृति का क्रन्तिकारी पहलू 6.बाढ़ और कविता 7.कबीर से उत्तर कबीर फ़िलहाल बनारस के बुनकरों का अध्ययन.प्रतिबिम्ब और तानाबाना दो साहित्यिक मंचों का संचालन. सम्प्रति: बीएचयू, हिंदी विभाग में वरिष्ठ सहायक प्रोफेसर के पद पर अध्यापन.
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